Sunday, February 6, 2011

पारिजात


पारिजात या हरसिंगार का एक छोटा सफ़ेद फूल होता है | इसकी पत्तियाँ 6 -12 सेन्टीमीटर लम्बी और 2 से 5 सेन्टीमीटर चौड़ी होती हैं |फूल के 6 -8 पंखुड़ियां होती हैं और बीच मे नारंगी orange या लाल red रंग होता है |इसके खुशबू दार फूल 2 से 7 समूह में खिलते हैं | इन फूलों की विशेषता है कि ये शाम के बाद खिलते हैं और सूर्योदय से पहले ही गिर जाते हैं |

इन फूलों को औषधि के रूप मे प्रयोग किया जाता है |

इस पारिजात के पौधे से कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हैं | एक कहानी के अनुसार एक राज कुमारी पारिजातका को सूर्य से प्रेम हो गया था और उसने सूर्य को पाने के लिए तप किया| सूर्य ने उसके प्रेम को स्वीकार नही किया और राज कुमारी ने सूर्य के प्यार मे आत्म ह्त्या कर शरीर त्याग दिया |उस राज कुमारी के शरीर की राख से ही पारिजात के पौधे का जन्म हुआ |क्योंकि राजकुमारी आज भी अपने प्रेमी सूर्य को तपता हुए नहीं देख सकती , इसीलिए पारिजात का फूल शाम को सूर्यास्त के बाद खिलता है और सूर्योदय से पूर्व ही गिर जाता है |कुछ का यह भी मानना है कि सूर्य पहली किरण पड़ने पर पारिजात आंसू बहाता है जिससे उसके फूल झड़ जाते हैं |पर फूलों की सुगंध पूरे दिन वातावरण में रहती है और अपने सूर्य के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करती है |

एक और कहानी के अनुसार पारिजात का वृक्ष समुद्र मंथन में प्राप्त हुआ था और इसे इंद्र ने अपने पास स्वर्ग में रख लिया था |एक बार नारद इस वृक्ष से कुछ फूल इंद्र लोक से लेकर कृष्ण ज़ी के पास आये | कृष्ण ज़ी वो फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिया |इसके बाद नारद कृष्ण ज़ी की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे यह सारी बात बतायी | सत्यभामा को नारद ने बताया कि इंद्र लोक के दिव्य फूल कृष्ण ज़ी ने रुक्मणी को दे दिए हैं | यह सुन कर सत्यभामा को क्रोध आ गया और उन्होंने ने कृष्ण ज़ी के पास जा कर कहा कि उन्हें पारिजात का वृक्ष चाहिए | कृष्ण ज़ी ने कहा कि वो इन्द्र से पारिजात का वृक्ष अवश्य ला कर सत्यभामा को देंगे |

नारद ज़ी इस तरह से झगड़ा लगा कर इंद्र के पास आये और कहा कि स्वर्ग के दिव्य पारिजात को लेने के लिए कुछ लोग मृत्यु लोक से आने वाले हैं पर पारिजात का वृक्ष तो इंद्र लोक की शोभा है और इसे यहीं रहना चाहिए | जब कृष्ण ज़ी सत्यभामा के साथ इंद्र लोक आये तो इंद्र ने इस पारिजात को देने का विरोध किया पर कृष्ण के आगे वो कुछ न कर सके और पारिजात उन्हें देना ही पडा| पर उन्होंने पारिजात को श्राप दे दिया कि इसका फूल दिन में नही खिलेगा |

कृष्ण ज़ी सत्यभामा की जिद के कारण पारिजात को लेकर को लेकर आ गए और पारिजात को सत्यभामा के महल में लगा दिया गया | पर सत्यभामा को सीख देने के लिए ऐसा कर दिया कि वृक्ष तो सत्यभामा के महल में था पर पारिजात के फूल रुक्मणी के महल में गिरते थे | इस तरह सत्यभामा को वृक्ष मिला पर फूल रुक्मणी के हिस्से आ गए | यही कारण है पारिजात के फूल हमेशा वृक्ष से कुछ दूर ही गिरते हैं |

2 comments:

  1. प्रिय मंजु जी । सप्रेम वन्दे । आज आपके जय श्रीराम ब्लाग को ढ़ुँढ़ ही लिया । प्रथम मेँ पारिजात सो समुद्र मंथन से निकला एक दिव्य वृक्ष है । यह ध्रुव सत्य है । मैँ इसके पाँच पत्ते और पाँच कालीमिर्च के साथ सिलबट्टे पर चटनी जैसा पीस करीब आधाकप जल मेँ मिलाकर करीब हजारोँ बुखार के रोगीयोँ को दिया हूँ । कैसा भी हठी बुखार हो उपरोक्त विधि से दिन तीन वार लेने से निश्चित आरोग्य होगा ।
    जय श्रीराम ।

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