Friday, July 26, 2013

अचलेश्वर महादेव मंदिर


राजस्थान में माउंटआबू का सदियों पहले से आध्यात्मिक महत्व रहा है जिसका जिक्र हमारे पुराण भी करते हैं। पुराणों के मुताबिक यह नगरी अर्धकाशी कहलाती है क्योंकि यहां भगवान शंकर के 108 मंदिर है। स्कंद पुराण के मुताबिक वाराणसी शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी । अचलगढ़ का शिव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में हैं अचलगढ़ मंदिर एक बहुत ही सुन्दर और प्राचीन मंदिर हैं । मंदिर परिसर में मंदिर के आगे नंदी जी की बड़ी मूर्ति हैं जो पीतल की हैं । मंदिर के अंदर एक गहरा गड्डा बना हुआ है और पास में ही स्फटिक पत्थर की दो प्राचीन मूर्तिया भी है। यह शिवलिंग कुदरती रूप से ऐसा ही हैं, और यहां शिवलिंग के गड्ढे में अन्दर भगवान शंकर के पैर के अंगूठे का निशान बना हुआ हैं। भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। दुनिया में यही इकलौती जगह है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग की नहीं बल्कि उनके अंगूठे की पूजा की जाती है। यह स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यह देवाधिदेव शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है।
मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर की बायीं बाजू की तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है और बस देखते ही बनती है। कहते हैं कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं | इस मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे।

उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई, तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय बाहर जमीन पर आ गई। एक बार दोबारा ऐसा ही हुआ। इसे देखते हुए बार-बार के हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए। उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ। वरदान प्राप्त कर नंदी खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी का नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत है। इसके बाद भी वह अचल नहीं रह पा रहा था, तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया तभी यह अचलगढ़ कहलाया।

तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउन्ट आबू के पहाड़ को थाम रखा हैं और जिस दिन यह अंगूठे का निशान गायब हो जायेगा माउंट आबू पहाड़ खत्म हो जाएगा ।

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